Vijay dashmi dashaira kyun mante hain|विजयदशमी दशहरा क्यों मनाते हैं
आईये विस्तृत रुप से जानते और समझते हैं कि विजयदशमी दशहरा क्यों मनाते हैं
यह लंका में श्रीरामजी और रावण के बीच कई दिनों तक चले घोर संग्राम में श्रीराम के माध्यम से रावण पर विजय प्राप्त करने के उपलक्ष्य में मनाया जाने वाला त्यौहार है।
रावण और लंका पर श्रीरामजी की विजय का यह उत्सव प्रत्येक वर्ष अश्विन (कुंवार) माह शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है।
शुक्ल पक्ष को उजाला या उज्यारा पक्ष और कृष्णा पक्ष को अंधेरा या अंध्यारा पक्ष कहा जाता है
इस तिथि को ही चण्ड मुण्ड नामक दैत्यों का भी संघार शेरोवाली माता के माध्यम से किया गया। इन प्रमुख विजयों के अत्यंत ही महत्व के कारण यह तिथि विजयदशमी के रुप में प्रचलित हुई।
विजयदशमी दशहरा पर निबंध व शस्त्र पूजा
इसी कारण से प्रत्येक वर्ष माह की इस दशमी तिथि को श्रीराम जी की विजय के उत्सव के रुप में इस आयोजन में रावण का विशाल पुतला जलाया व दहन किया जाता है।
जो यह दर्शाता है अथवा प्रतीक है कि जीवन में मनुष्य को भी इसी प्रकार समस्त विघ्न वाधाओं पर साहस सदैव से विजय प्राप्त होती रहेगी। ऐसा जन मानश का ढृढ़ भरोसा है।
और इसी भरोसे और सकारात्मक ऊर्जा से जीवन में प्रत्येक क्षेत्र में विजय को प्राप्त करते हुए सदैव उन्नति और सदमार्ग पर बने रहेंगे।
विजयदशमी दशहरा का महत्व
इसके महत्व को स्पष्ट रुप से इसी से समझा जा सकता है कि रामलीला का मंचन महीने भर पहले ही आरम्भ हो जाता है।
जिसमें एक एक घटनाओं का मंच के माध्यम से दर्शकों के समक्ष प्रस्तुति करण बडे ही मनोभाव से किया जाता है।
जिसे लोग नियमित रुप से बहुत ही प्रसन्नता भाव से देखते हैं। जिसका समापन विजयदशमी के दिन रावण दहन के साथ ही समपन्न होता है।
इण्डोनेशिया में तो इसे अत्यंत ही उत्साह से भारत के समान ही महत्व और हर्षोल्लास के साथ जीवन में आदर्श के रुप में प्रसन्न मनोभावों से मनाया जाता है।
जिसे वहां के नागरिक जीवन में अभिन्न हिस्से के रुप में समाहित करते हैं। और रामायण की प्रत्येक चौपाई से और बेहतर इनसान बनने के लिए इसका अध्ययन करते एवं कराते हैं। जबकि वहां की अधिकतम आबादी मुसलिम समुदाय की है।
फिर भी वह इसे अपनी संस्कृति में आत्मा के समान समाहित करते हैं। इसके बिना उनका जीवन ठीक उसी प्रकार से अधूरा है।
विजयदशमी दशहरा रावण दहन |
जीवन के लिए सबसे बड़ी महत्वपूर्ण प्रेरणा
यह विश्व में एक आदर्श विजय है। और यह अध्ययन एवं शोध का विषय भी है। विश्व में अचर्ज से भरे सबसे अनोखे निर्माण के सफलता पूर्वक समपन्न होने की विजय का है।
क्योंकि इसमें लंका पहुच कर रावण से युद्ध में विजय की सबसे बडी बाधा बीच मार्ग में विशाल समुद्र था।
जिसे पार करके ही वहां पहुचा जा सकता था। जो एक असम्भव सा दिखाई पडने वाला कार्य प्रतीत हो रहा था। जो इस महा संग्राम में विजय प्राप्त करने के लिए पहली सबसे बडी विजय थी।
किन्तु यह कार्य कैसे सम्भव हो। इसके लिए चिन्तन मनन एवं शोध कार्य किया गया। जिसे विश्व की सबसे पहली शोध भी कहा जा सकता है।
क्योंकि इसी के आधार पर विशाल समुद्र पर एक लम्बे रामसेतू का सफलता पूर्वक निर्माण कार्य सम्भव किया जा सका।
यह निर्माण आज के विज्ञान और वैज्ञानिकों के लिए शोध का सबसे बड़ा महत्वपूर्ण विषय है। क्योंकि उस समय बड़ी बड़ी मशीनों के अभाव में यह कार्य कैसे सम्भव किया जा सका।
अथवा उस समय का विज्ञान आज विज्ञान से कही अधिक उन्नत और विकसित था। यह स्वीकार करना ही पडेगा। जो आज भी सम्भव नहीं है।
और उस समय आज से भी बड़ी एवं उन्नत तकनीक रही होगी। ऐसा विज्ञान का मनना हो सकता है। क्योंकि विज्ञान के आधार पर यह ऐसा तभी सम्भव हो सकता है।
जब यह विकसित संसाधन उस समय भी उपलब्ध रहे होंगे। अन्यथा यह कैसे सम्भव किया जा सका।
जिस सेतु निर्माण के साक्ष्य को आज भी सैटेलाइट चित्रों के माध्यम से स्पष्ट रुप से रामेश्वरम में समुद्र के जल में स्पष्ट रुप से देखा जा सकता है।
इस अवसर पर इसकी चर्चा अति आवश्यक है। क्योंकि इसके बिना यह अधूरी रहेगी।
यह भारतीयों के जीवन में बहुत अधिक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। जो उनके जीवन में अभिन्न अत्यंत ही गौरवशाली और प्रभावशाली है।
सत्य की असत्य पर सबसे बड़ी जीत
यह केवल प्रत्येक वर्ष रावण का पुतला दहन तक सीमित नहीं है। अपितु इस संसार में सत्य की असत्य पर सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण विजय है।
जो मानव जाति को सदैव बुराई से ना घबराने और उस पर विजय प्राप्त करने के लिए प्रेरणा प्रदान करती रहेगी।
यह मानव को स्वयं के प्रति सकारात्मक भावों के बनाये रखने और अटुट भरोसे के रुप में सदा सदा के लिए साहस प्रदान करने का कार्य करती रहेगी।
इस रावण दहन के अलावा मानव को इसका भी प्रण करना चाहिए कि उनके अन्दर का बुराई अथवा बुरी आदतों रुपी इस रावण का भी दहन करें। और समाज में व्याप्त बुराइयों रुपी इस रावण को भी मिटाने का ढृढ़ता पूर्वक निश्चय करें।
जिससे वास्तव में हमारे चारों ओर के अनेका अनेक दशान्न रावणों को मिटाकर।सुन्दर और सुन्हैरी विजय प्राप्त कर जीवन में वास्तविक हर्षोल्लास का संचार हो सके।
और समस्त भूमि के साथ सम्पूर्ण वायु भी शुद्धता एवं पवित्रता को प्राप्त कर निर्मल व स्वच्छ हो सके।
तभी हम जीवन और इस संसार में पूर्ण रुप से इस अवसर पर पुतला रुप में रावण दहन का उद्देश्य अपनी सार्थकता को प्राप्त कर सकेंगे। और इस प्रकार से हमने यह जाना कि Vijay dashmi dashaira kyun mante hain|विजयदशमी दशहरा क्यों मनाते हैं। जिसका हमारे जीवन अत्यंत ही महत्वपूर्ण स्थान है और सदा ही बन रहेगा।
0 टिप्पणियाँ