Company kitne prakar ki hoti hain|कंपनी कितने प्रकार की होती हैं
अपने पिछले लेख में कंपनी के विषय में बहुत कुछ जान चुके हैं। आईये अब विस्तृत रुप से चर्चा करते हैं कि Company kitne prakar ki hoti hain|कंपनी कितने प्रकार की होती हैं
इससे पहले के साझेदारी व एकल व्यवसाय के सीमित क्षेत्र के कारण बदलते समय के बाजार की क्षमताओं और अपार सम्भावनाओं के अनुसार आवश्यकताओं को बहुत अच्छे से पूरा करने में असफल रहे हैं।
जिसके कारण इनके नये संस्करण वर्जन के रुप में कंपनी जैसे मजबूत और सुदृढ़ व्यवसायीक संगठन की आवश्यकता महसूस हुई। जिससे इसका स्वरुप सामने आया। इनके कई प्रकार हैं जैसे कि-
- कंपनी सदस्यों की संख्या के आधार पर
- रजिस्ट्रेशन के आधार पर
- आर्थिक जिम्मेदारी के आधार पर
- मैनेजमेंट कन्ट्रोल के आधार पर
- कंपनी मालिकों के अनुसार
- कंपनी की राष्ट्रीयता के अनुसार
- एक व्यक्ति की कंपनी
कंपनी के सदस्यों की संख्या के अनुसार
इसमें सदस्यों की संख्या के अनुसार यह निम्न प्रकार की होती हैं जैसे कि-
निजी प्राइवेट कंपनीयां
यह वह इकाईयां होती हैं। जिसकी कैपिटल एक लाख रुपये या इससे अधिक हो जो उसके अन्तर्नियमों में निर्धारित की गई हो। इसके सदस्यों की न्यूनतम संख्या दो 2 होती है।
इनकी अंश पूंजी पर पूरी रह से रोक होती है। इनमें जो भी कर्मचारी हैं या कर्मचारी रह चुके हैं। और जो इनमें कर्मचारी के साथ ही इनके सदस्य भी हैं। अथवा सेवा समाप्त हो चुकी है फिर भी सदस्य हैं।
ऐसे सभी व्यक्तियों को छोड़कर इनमें सदस्यों की संख्या अधिकतम 50 तक ही सीमित होती हैं। जबकि जिनके पास ऋणपत्र होते हैं। उनकी संख्या 50 से अधिक हो सकती है।
साथ ही अपने शेयरों और ऋणपत्रों को बेचने के लिए किसी भी प्रकार से पब्लिक को को आमंत्रित नहीं कर सकतीं हैं। यह केवल अपने सदस्यों संचालकों और अन्य रिस्तेदारों आदि से ही पूंजी की वयवस्था करती हैं।
इनके नाम के अन्त में Private limited प्राइवेट लिमिटेड शब्द होता है। इसके निदेशकों को इसका कर्मचारी नहीं माना जाता है। जो संयुक्त सदस्य होते हैं। उन्हें एक ही सदस्य माना जाता है।
Limited लिमिटेड कंपनी
प्राइवेट लिमिटेड कंपनियों के अलावा जो भी इकाईयां है वह सभी Limited लिमिटेड इकाईयां होती है। इसके सदस्यों की कम से कम संख्या सात 7 होती है।और अधिकतम सदस्यों की संख्या की कोई लिमिट नहीं है।
इसकी कैपिटल पांच 5 लाख या इससे अधिक होती है। इनमें अपने शेयरों को कोई भी स्वतंत्र रुप से किसी को भी ट्रांसफर कर सकते हैं। यह अपने शेयरों व ऋणपत्रों को बेचने के लिए पब्लिक को आमंत्रित कर सकती हैं।
कंपनी रजिस्ट्रेशन के आधार पर
इस के रजिस्ट्रेशन के आधार पर कंपनी तीन उप प्रकार की होती है जैसे कि-
रजिस्ट्रर्ड कंपनियां
वह सभी कंपनियां जिनका पंजीकरण भारतीय कंपनी अधिनियम के अनुसार हुआ है। वह रजिस्ट्रर्ड कंपनियां कहलाती हैं।
अधिकतर भारतीय कंपनियां कंपनी अधिनियम 1956 के अनुसार ही बनी हैं। किन्तु अब कंपनी संशोधन अधिनियम 2013 भी सक्रिय हो चुका है।
इन इकाइयों में सदस्यों के माध्यम से इकाई में जितने लिये जाते हैं। उन शेयरों का जो भी कुल मूल्य भुगतान करने के लिए शेष रह जाता है।
उनकी लायबिलिटी उसी मूल्य के बरु होती है। उनसे अधिक मूल्य नहीं लिया जा सकता है। या सदस्यों ने जितने उन जितने शेयरों के मूल्य की गारंटी ली हो।
किसी विशेष अधिनियम से बनी कंपनियां
इस प्रकार की इकाईयों केन्द्र सरकार और राज्य सरकार के विधानमंडल के विशेष अधिनियम के माध्यम से पंजीकृत होती हैं। इनके लिए स्मृति पत्र या सीमनियम Memorandum of Association M.O.A की आवश्यकता नहीं होती है।
इनके नियम उद्देश्य कार्यक्षेत्र और जिम्मेदारियों का विस्तृत रुप से वर्णन उस विशेष विधानमंडलीय अधिनियम में होती है। मुख्य रुप से यह इकाईयां सरकारी उपक्रम कहलाते हैं। साथ ही इनके नाम के अन्त में लिमिटेड शब्द नहीं लगाया जाता है।
जैसे कि- भारतीय खाद्य निगम FCI, इण्डियन आयल कार्पोरेशन IOC, भारतीय रिजर्व बैंक आफ इण्डिया RBI, भारतीय स्टेट बैंक आफ इण्डिया SBI, सेण्ट्रल बैंक आफ इण्डिया CBI, भारतीय सेतु निगम, नेशनल हाईवे अथारिटी आफ इण्डिया NHAI आदि।
राज्य शाही आदेश से या चार्टर्ड कंपनियां
यह इकाईयां राज्य शाही रायल अथवा राज्य व्यवस्था के एक विशेष घोषणा पत्र या चार्टर्ड के अधीन बनाई गई कंपनियां होती हैं।
जो ब्रिटिश राजा रानी के माध्यम से होती हैं। इनका मुख्य उद्देश्य सैन्य शासन नियन्त्रण के साथ व्यापार करना भी होता है। जैसे कि- स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक।
आर्थिक जिम्मेदारी के आधार पर
आर्थिक जिम्मेदारी के आधार पर कंपनियां निम्न प्रकार की होती हैं जैसे कि- कंपनी क्या होती है
अंशों शेयरों के माध्यम से सीमित कंपनियां
अंशों के माध्यम से सीमित इकाईयों में उसके सभी सदस्यों ने जितने भी शेयर लिये हैं। उन्होंने उन इक्विटी का जो मूल्य नहीं चुकाया है।
कंपनी कितने प्रकार की होती हैं
वही उन सभी सदस्यों की आर्थिक जिम्मेदारी है। इकाई यह मूल्य उनसे कभी भी ले सकती है। किन्तु उनसे उस बचे हुए मूल्य से अधिक नहीं ले सकती है।
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इसे ही अंशों के माध्यम से सीमित इकाई कहते हैं। इन सभी को अपने नाम अन्त में Limited लिमिटेड शब्द को लगाना अति आवश्यक होता है।
गारण्टी के माध्यम से सीमित कंपनियां
इसमें सभी सदस्यों के माध्यम से इस सम्बंधित इकाई में यह गारंटी दी जाती है कि उनकी सदस्यता के समय में ही अथवा सदस्यता समाप्त होने के एक वर्ष के भीतर वह उस इकाई को वह निश्चित राशि प्रदान करेंगे।
जो उन्होंने इकाई की गारंटी के रुप में जिम्मेदारी ली है। इस प्रकार इन्हें को जिम्मेदारी या दायित्व वाली इकाई भी कहते हैं।
असीमित जिम्मेदारी वाली कंपनीयां
इस प्रकार की इकाईयों में सदस्यों की जिम्मेदारी liability की कोई सीमा नहीं होती है। इसके माध्यम से लिया गया फाइनेंस और अन्य पूंजी भुगतान के लिये सभी सदस्यों की जिम्मेदारी होती है।
यदि कोई भी सदस्य अपने दायित्व को पूरा करने में असमर्थ है। तो वह अपनी निजी सम्पत्ति से उसका पूरा करने के लिए उत्तरदायी होंगे। किन्तु आजकल के समय में इस प्रकार की इकाईयों का चलन नहीं है।
कंपनी मैनेजमेंट और कंट्रोल के आधार पर
इकाई केमैनेजमेंट और कंट्रोल के हिसाब से इन्हें निम्न प्रकार से देखा जा सकता है जैसे कि-
नियंत्रक मूल parent company
यह वह इकाई होती है। जिसका किसी अन्य दूसरी इकाई के प्रबंधन और संचालन पर नियंत्रण होता है। उसकी उस अन्य इकाई में निर्णय लेने और लागू करने की क्षमता या अधिकार होता है।
वह नियंत्रक इकाई पैरेंट् होल्डिंग parent holding या उसकी मूल इकाई कहलाती है। इसकी कुछ मुख्य शाक्तियां जैसे कि-
- इसके पास दूसरी इकाई के सभी या आधे से अधिक संचालकों व प्रबंधकों को हटाने और नियुक्त करने की क्षमता होती है।
- मूल इकाई की सहमति के बिना किसी भी प्रबंधक व संचालक की नियुक्ति नही हो सकती है।
- किसी भी अन्य संचालक व प्रबंधक नियुक्ति तभी सम्भव है जबकि वह मूल इकाई में संचालक हो।
- यदि उसका नाम किसी सहायक subsidiary इकाई ने प्रस्तावित किया हो।
- उस व्यक्ति संचालक या इकाई के पास आधे से अधिक शेयर हों।
- कोई भी इकाई दूसरी में सहायक इकाई हो सकती है।
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