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दिवाली कब मनाई जाती है

दिवाली कब मनाई जाती है

यह उजाले और रौशनी का त्यौहार है। इस उपलक्ष्य में बहुत से मिट्टी के, धातुओं आदि के दीआ और लाइटें जलाई जाती हैं। आईये यह विस्तृत रुप से समझते हैं कि दिवाली कब मनाई जाती है

यह कार्तिक माह की अमावस्या तिथि को मनाई जाती है। जो कृष्णा पक्ष की सबसे अधिक अंधेरे की अंध्यारी रात होती है। कार्तिक माह अंग्रेजी कैलेंडर के अक्टूबर-नबम्बर महीने में पडता है।

इसकी तैयारियां लगभग एक माह पूर्व ही आरम्भ होने लगती हैं। घरों और व्यवसयिक प्रतिष्ठानों की साफ सफाई,पुताई और सजावट विशेष रुप से की जाती है। घरों में बहुत सी मिठाईयां एवम्ं पकवान बनाये जाते हैं

इस त्यौहार पर लक्ष्मी माता की पूजा अर्चना अत्यंत ही विशेष हर्षोंउल्लास और महत्व से की जाती है। जिससे जीवन में धन समृद्धि और वैभव सदा सदा के लिए बना रहे

दिवाली क्यों मनाई जाती है

जब भगवान मर्यादा पुरुषोत्तम श्री सियाराम लंका में युद्ध के दौरान रावण का वध और विजय प्राप्त कर एवं 14 वर्ष का बनवास बिताकर माता सीता जी को साथ लेकर अयोध्या बापस लौटकर आये

तो खुशी और प्रसन्नता से समस्त अयोध्या वासियों ने सम्पूर्ण नगर में दीआ जलाकर श्री सीतारामजी का स्वागत किया। और बहुत खुशियां और उत्सव मनाया

तभी से निरन्तर भारतवर्ष के साथ समस्त विश्व भर के अनेक देशों में दीयों और उजाले का यह उत्सव दीपावली मनाई जाती है

यह भारतीयों के जीवन में खुशियां और समृद्धि का प्रतीक त्यौहार है। इसीलिए इसे अत्यंत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है।

दिवाली से पहले और बादके त्यौहार

इससे पहले दो और बाद मे दो त्यौहार मनाये जाते हैं। कुल मिलाकर यह पांच त्यौहारों का समूह रुप है। जैसे कि-

  1. धनतेरस
  2. यम चतुर्दशी
  3. दिवाली
  4. गोवर्धन पूजा
  5. भाईदूज

धनतेरस का त्यौहार

धनतेरस कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाने वाला त्यौहार है। यह मुख्य रुप से आयुर्वेद के जनक धन्वंतरी जी को समर्पित त्यौहार है। यह स्वास्थ्य और समृद्धि का महा उत्सव भी है

इसे जीवन के लिए अत्यंत ही शुभ और समृद्धि दायक माना जाता है। जिससे जीवन सदैव स्वस्थ एवं समृद्ध बना रहे

साथ ही इस दिन लोग बाजार से बड़ी मात्रा में वाहन गाड़ी, घर, नये वस्त्र, वर्तन और सोना चांदी आदि की बहुत सी वस्तुओं की खरीदारी विशेष रुप से की जाती है। भारतवर्ष में लोगों के जीवन में धनतेरस का अत्याधिक महत्व है

यम चतुर्दशी या छोटी दिवाली

इसे कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष चतुर्दशी तिथि को मुख्यतः यमराज को समर्पित कर मनाया जाता है। इसमें विशेष रुप से उनकी पूजा अर्चना का भाव समर्पित रहता है

इसे नरक चतुर्दशी भी कहा जाता है। सुबह को सूर्य निकलने से पहले स्नान  कर एवं तिल के साथ तीन बार उन्हें जलांजली अर्पण करने से उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है

जिससे प्राणी को नर्क में नहीं जाना पड़ता ऐसा भाव समाहित होता है। इसी तिथि को श्रीकृष्णा के दर्शन और अराधना करने से उनकी भी अत्यंत ही विशेष कृपा प्राप्त होती है

diwali manane ke karan-दिवाली मनाने के कारण
दिवाली कब और कैसे मनाई जाती है

शाम के समय एक चतुर्मुखी दिआ जला के घर में घुमाकर दरवाजे के पास रखना जाता है। इसे यम दिआ भी कहा जाता है। साथ ही साथ पितृ पक्ष बीतने के बाद इसे पितृलोक के लिए दिआ प्रज्जालित करना भी कहते हैं।

साथ ही इस तिथि को विधि विधान से 
वृत नियम करने और महिलाओं के  
पूर्ण रुप से सजने सबरने से उन्हें जीवन  में सौन्दर्य और सौभाग्य वृद्धि प्राप्त 
होती है। जिससे समृद्धि और सौभाग्य में वृद्धि होती है

गोवर्धन पूजा का त्यौहार

दिवाली के ठीक अगले दिन ही यानी कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष प्रथम तिथि (जिसे सामान्य बोल चाल में पडवा भी कहा जाता है) को गोवर्धन पूजा का उत्सव मनाया जाता है

इसे सबसे पहले बृज में श्री कृष्णा के माध्यम से गोकुल वासियों ने गोवर्धन पर्वत की पूजा अर्थात प्रकृति और पर्यावरण के रक्षण और संरक्षण के संकल्प रुप में इस उत्सव को मनाया गया
 
जिससे जीवन में प्रकृति का सानिध्य और आनंद बना रहे। और साथ ही जीवन में धन्य धान्य अनधन के भण्डार सदैव भरे रहें। कभी भी इनकी कमी ना हो। यही इसका विशेष महत्व और मनोभाव होता है

बृज में इसे अत्यंत ही उत्साह एवं आनन्द से मनाया जाता है। वहां इसका बहुत अधिक महत्व है। इसलिए इसे श्री कृष्णा को समर्पित त्यौहार के रुप में मनाया जाता है। अथवा प्रकृति, पर्वत और गोवर्धन पर्वत की श्री कृष्ण का ही स्वरुप माना जाता है।

गोवर्धन पर्वत के विषय में ऐसा वर्णन मिलता है कि जब श्रीरामजी की कृपा से लंका जाने के लिए समुद्र पर रामसेतु निर्माण कार्य चल रहा था। तो परम श्रीराम सेवक श्री हनुमान जी इस पर्वत को निर्माण कार्य के लिए लेजा रहे थे

किन्तु इसी समय रामसेतु निर्माण कार्य समपन्न हो गया। और घोषणा हो गई कि और पत्थर ना लाये जायें। (रामसेतु को आज रामेश्वरम में देखा जा सकता है) तभी श्री हनुमान जी ने पर्वत को बृज क्षेत्र में ही छोड़ दिया
 
और निर्माण कार्य में उपयोग ना आने के कारण पुनः श्री कृष्णा के रुप में उनकी कृपा प्राप्त होगी। ऐसा आशिर्वाद प्रदान कर सेतु स्थल पर उपस्थित हो गये

भाईदूज का त्यौहार

भाईदूज को कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। इसे सबसे पहले यमराज जी की बहन यमुना जी द्वारा मनाया गया।

यमुना जी ने उन्हें अपने घर बुलाना चाहती थी। किन्तु उन्होंने बहुत ही जादा व्यस्त होने के कारण ना आने पाने की बात कही।

किन्तु वह कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष द्वितीया तिथि को उनसे मिलने पहुंचे जाते हैं। इसी प्रसन्नता के कारण यमुना जी उनका तिलक कर नारियल भेट किया। और उनके लिए प्राथना करती हैं
 
इसी उपलक्ष्य में दीपावली के अंतिम त्यौहार के रुप में इसे मनाया जाता है। और इसी के साथ धन समृद्धि स्वास्थ्य और खुशियों का यह त्यौहार बड़ी ही धूम धाम से समपन्न होता है

दिवाली का त्यौहार कैसे मनाया जाता है

कार्तिक माह की अमावस्या के दिन घरों की साफ सफाई कर फूल, तोरण आम के पत्ते, अशोक के पत्ते एवं रंगोली आदि से सजाकर।

ढेरों मिठाईयां और पकवान बनाकर श्री गणेश लक्ष्मीनारायण जी की पूजा अर्चना के साथ ही इसे बडे हर्षों उल्लास और आनन्द से मनाया जाता है

साथ ही शाम को सम्पूर्ण घर में दिओं को जलाकर उजाला और रौशनी करते हैं। जिससे यह अमावस्या की घोर अंधेरी रात उजाले से जगमगा जाती है। जिससे सभी ओर रौशनी ही रौशनी हो जाती है

और अपने अपने प्रियजनों को शुभ मंगल कामनाऐं प्रदान करते हैं। जिससे आपस में सहयोग और सदभाव की भावना विकसित होती है। और मिठाईयां खिलाकर एक दूसरे का स्वागत सत्कार किया जाता है

दिवाली पर आप क्या करते हैं

आज सभी तैयारियां ठीक प्रकार से समपन्न कराकर पूजा अर्चना करके घरों को सजाकर। और साथ ही साथ दिओं को जलाकर अपने माता पिता, सम्मानित जनो एवं बुजुर्गों का शुभ आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

जिससे जीवन में सदैव अखंड सौभाग्य, सफलता और उन्नति को प्राप्त करते 
रहें। और सदैव ही सकारात्मक विचार धारा बनी रहे

दिवाली का महत्व

यह त्यौहार अपने आप में अत्यंत ही विशेष महत्वपूर्ण है। क्योंकि सर्वप्रथम तो यह श्री सीताराम जी के अयोध्या पुनः आगमन की विशेष खुशी के उपलक्ष्य में मनाया जाने वाला उत्सव है

साथ ही यह सयुंक्त रुप से पांच त्यौहारों का एक स्वरुप है। जिन्हें अत्यंत ही हर्षों उल्लास से मनाया जाता है। जो बुराई पर अच्छाई का सबसे बड़ा जीत का स्वरुप है

दिवाली का त्यौहार एक ऊर्जा स्रोत है

जिससे जीवन में प्रत्येक स्थिति का साहस, धैर्य, बुद्धि और सकारात्मकता से सामना करने की प्रेरणा प्राप्त होती रहती  है

मानव के लिए यह साक्षात एक ऊर्जा स्रोत है। इसका हमारे जीवन में अत्यंत ही विशेष प्रभावशाली और महत्वपूर्ण स्थान है

जिससे विपरीत परिस्थितियों में भी विचलित ना होने की शिक्षा सदैव ही  प्राप्त होती रहगी। इसलिए जीवन में दिवाली का विशेष महत्व और स्थान है

अत: इसे विस्तृत रुप से पढ़ने और समझने के बाद हम यह पूरी तरह से जान चुके हैं कि दिवाली कब मनाई जाती है। साफ सफाई और स्वाछता समावेश सदैव बना रहे यही इसका भाव है।


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